मंगलवार, 16 दिसंबर 2014

अथ घुम्मकड़ी कथा

कुछ आँखन कही, कुछ दिल की

यह एक नया ब्लॉग शुरू किया है. इसमें अपनी घुमक्कड़ी की कहानियां होंगी. कभी-कभार कुछ स्मृतियाँ और बैठे-ठाले का दर्शन भी होगा. कभी अपनी पसंद की फिल्मों और संगीत पर और कभी किताबों पर लिखने का मन है.

असल में, पिछले कुछ महीनों में कभी मजबूरी में, कभी काम से और कभी मौज में ठीक-ठाक यात्राएँ हो रही हैं.हर यात्रा अपने साथ बहुत सारे अनुभव छोड़ जाती है. उनसे बहुत कुछ सीखने को मिलता है. वैसे तो जीवन एक यात्रा ही है लेकिन हर यात्रा में जीवन और समृद्ध होता है.

(चित्र:बाएं से दायें-लेह की सुबह का चाँद, लेह में हिमालय की चोटियाँ और उत्तराखंड में बागेश्वर के पास जंगलों में) 
"घुमक्कड़ी एक रस है, जो काव्‍य के रस से किसी तरह भी कम नहीं है। कठिन मार्गों को तय करने के बाद नए स्‍थानों में पहुँचने पर हृदय में जो भावोद्रेक पैदा होता है, वह एक अनुपम चीज है। उसे कविता के रस से हम तुलना कर सकते हैं, और यदि कोई ब्रह्म पर विश्‍वास रखता हो, तो वह उसे ब्रह्म-रस समझेगा - 'रसो वैस: रसंहि लब्ध्वा आनंदी भवति।''
- राहुल सांकृत्यायन, घुमक्कड़ शास्त्र 
इन यात्राओं का अनुभव यह है कि उनसे बड़ा कोई शिक्षक नहीं है. यात्राओं में चलते-चलते हुए बहुत कुछ देखते, सुनते, समझते, महसूस करते चलते हैं. लेकिन उन अनुभवों को समेटने के लिए लिखना जरूरी है, वह नहीं हो पा रहा था.

बहुत दिनों से सोच रहा था कि एक ब्लॉग सिर्फ यात्रा और घुमक्कड़ी की कथाओं का शुरू करूँ जिसमें मेरे अनुभवों के साथ ढेर सारे चित्र हों.

डिजिटल कैमरे और मोबाइल के चित्रों के कारण यात्राओं की स्मृतियों को कम से कम चित्रों में सहेजना संभव हो गया है.

आनेवाले दिनों में अगर संभव हुआ तो अपनी कुछ पिछली यात्राओं और उनकी तस्वीरें आपके साथ शेयर करूँगा.

आपको प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा.